भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध विराम की इनसाइड स्टोरी

Authored By: News Corridors Desk | 11 May 2025, 05:20 PM
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10 फरवरी को दोपहर बाद करीब साढ़े पांच बजे जैसे ही अमेरिका के राष्ट्रपति का एक सोशल मीडिया पोस्ट सामने आया , पाकिस्तान की आवाम से लेकर वहां की सरकार और सेना तक ने राहत की सांस ली । करोड़ों पाकिस्तानियों की जान में जान आई जो भारत की मार से बेहाल होकर खौफ के साए में जी रहे थे । परन्तु ट्रंप के पोस्ट से भारत के लोगों में हैरानगी का भाव था । 

डोनाल्ड ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा कि अमेरिका की मध्यस्थता में दोनों देश युद्ध विराम के लिए सहमत हो गए हैं । ट्रंप की इस घोषणा अभी ठीक से चर्चा भी शुरू नहीं पायी थी कि इसी बीच भारत के विदेश सचिव ने बेहद संक्षिप्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में इसकी घोषणा कर दी । हालांकि उन्होने किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता से इनकार करते हुए कहा कि दोपहर करीब तीन बजकर 25 मिनट पर पाकिस्तान के डीजीएमओ ने भारत के डीजीएमओ को फोन कर सीजफायर की पेशकश की जिसे भारत ने मान लिया । 

भारत का कहना है कि आतंक के अड्डों को तबाह करने और पाकिस्तान को सबक सीखाने का उसका लक्ष्य पूरा हो गया है इसलिए फिलहाल हमलों को रोक दिया गया है । परन्तु ऑपरेशन सिंदूर अभी जारी है । भारत ने यह भी साफ कर दिया है कि अब यदि पाकिस्तान की ओर से किसी तरह का आतंकी हमला होता है तो उसे युद्ध की कार्रवाई माना जाएगा और उसका जवाब भी उसी तरीके से दिया जाएगा । बहरहाल अचानक से हुए युद्ध विराम को लेकर भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर में चर्चा का बाजार गर्म है । 

अचानक से क्यों सक्रिय हो गया अमेरिका ? 

एक दिन पहले तक अमेरिका के उपराष्ट्रपति जे डी वेंस यह कहते हुए दोनों देशों की  लड़ाई में दखल देने से इनकार कर रहे थे कि यह मूल रूप से उनका काम नहीं है । फिर ऐसा क्या हुआ कि अगले ही दिन ट्रंप प्रशासन सक्रिय हो गया और वाशिंगटन से लेकर दिल्ली और इस्लामाबाद में कूटनीतिक गतिविधियां तेज हो गई । बैक चैनल डिप्लोमेसी की तीव्रता का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि कुछ ही घंटों में युद्ध विराम की घोषणा भी हो गई । लेकिन यह सवाल अब भी बना हुआ है कि अचानक अमेरिका क्यों इतना सक्रिय हो गया ? 

क्या अमेरिका को थी 'न्यूक्लियर अनहोनी' की आशंका ?
 
अमेरिकी मीडिया रिपोर्ट्स में कहा जा रहा है कि ट्रंप प्रशासन को कुछ ऐसे खुफिया इनपुट्स मिले थे जिससे भारत और पाकिस्तान के बीच की लड़ाई के फैलने और इसके न्यूक्लियर हथियारों तक पहुंचने की आशंका सताने लगी थी । ऐसा इसलिए भी था क्योंकि पाकिस्तान भारत का मुकाबला नहीं कर पा रहा था । 

यही वजह है कि पूरा ट्रंप प्रशासन युद्ध विराम के लिए सक्रिय हो गया । यह भी बताया जाता है कि भारत की मार से पस्त होकर पाकिस्तान ने अमेरिका से बीच-बचाव कर किसी तरह से युद्ध को  रुकवाने के लिए गिड़गिड़ाने की हद तक जा पहुंचा । इससे पहले भी पाकिस्तान कई देशों से भारत से बात कर हमले को रूकवाने का अनुरोध कर चुका था परन्तु सफलता नहीं मिली । 

पाकिस्तान को सताने लगा न्यूक्लियर ठिकानों पर हमले का डर 

पहलगाम हमले के बाद भारत ने जवाबी कार्रवाई में पाकिस्तान में भारी तबाही मचाई है । भारत ने पाकिस्तान के एयर डिफेंस सिस्टम के साथ-साथ करीब 11 महत्वपूर्ण एयरबेस को तबाह कर दिया । पाकिस्तान भारत के हमले को रोकने में पूरी तरह से नाकाम रहा । उसकी चिंता तब काफी बढ़ गई जब भारत के मिसाइलों ने रावलपिंडी में नूर खान एयर बेस पर तबाही मचानी शुरू कर दी । रावलपिंडी के नूर खान में पाकिस्तानी सेना का महत्वपूर्ण सैन्य अड्डा है और यह राजधानी इस्लामाबाद के काफी करीब है । 
 
नूर खान एयर बेस पाकिस्तान की सेना का सेंट्रल ट्रांसपोर्ट हब भी है । परन्तु इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि यह केंद्र पाकिस्तान के स्ट्रैटेजिक प्लान डिवीजन के मुख्यालय के बेहद करीब है । पाकिस्तान के परमाणु शस्त्रागार की देखरेख और सुरक्षा की जिम्मेदारी स्ट्रैटेजिक प्लान डिवीजन पर ही है । 
नूर खान एयर बेस पर मिसाइल अटैक के बाद से पाकिस्तान को इस बात का एहसास हो गया कि उसके न्यूक्लियर ठिकाने भी भारत के मिसाइलों की जद से बाहर नहीं हैं ।  ऐसे में उसे न्यूक्लियर कमांड अथॉरिटी की तबाही का डर सताने लगा । ऐसे में वह भागता हुआ अमेरिका की शरण में जा पहुंचा । 

न्यूक्लियर हथियारों के इस्तेमाल की धमकी काम नहीं आई

जब पाकिस्तान ने भारत के हमले का जवाब देने में खुद को असमर्थ पाया तो न्यूक्लियर ऑप्शन पर विचार करने का शिगूफा भी छोड़ा । पाकिस्तानी मीडिया में खबर आई कि प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने नेशनल कमांड अथॉरिटी की बैठक बुलाई है ।  नेशनल कमांड अथॉरिटी ही यह निर्णय लेता है कि परमाणु हथियारों का उपयोग कैसे और कब किया जाए । इसकी अध्यक्षता वैसे तो प्रधानमंत्री करते हैं और सरकार के वरिष्ठ मंत्री और सैन्य प्रमुख इसमें शामिल होते हैं ।  परन्तु चलती सेना प्रमुख की ही है । 

हालांकि भारत पर इसका कोई असर नहीं पड़ा । वैसे पाकिस्तान के नेशनल कमांड अथॉरिटी की बैठक हुई भी नहीं । पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने युद्धविराम के बाद परमाणु विकल्प की बात तो मानी परन्तु साथ में यह भी कहा कि , "हमें इसे एक बहुत दूर की संभावना के रूप में देखना चाहिए । हमें इस पर चर्चा भी नहीं करनी चाहिए ।"

अमेरिका और भारत ने मिलकर चीन की रणनीति विफल की ? 

चीन एक औसा देश है जो हमेंशा पाकिस्तान के साथ खड़ा रहा है । भारत और पाकिस्तान के बीच मौजूदा संघर्ष के बीच भी चीन ने पाकिस्तान को समर्थन की बात कही । हालांकि साथ में वह दोनों देशों से टकराव को रोकने की अपील भी करता रहा । 

परन्तु क्या वाकई में चीन दोनों देशों के बीच शांति बहाल करना चाहता था ? जियो पॉलिटिक्स के कई जानकार इससे सहमत नहीं हैं । उनका मानना है कि भारत का पाकिस्तान से उलझे रहना चीन के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है । ट्रंप प्रशासन के टैरिफ मार की वजह से चीन इन दिनों आर्थिक मोर्चे पर बेहद चुनौतीपूर्ण दौर से गुजर रहा है । ऐसे में वह एक तरफ भारत से अपने संबंध बेहतर बनाने की कोशिश कर रहा है । 

भारत के साथ उसका एक बिलियन डॉलर से अधिक का व्यापार होता है । मौजूदा दौर में वह इसे भी नुकसान पहुंचाना नहीं चाहता । इसके साथ ही चीन अमेरिका और यूरोप के साथ व्यापार में होने वाले घाटे की भरपाई के लिए भारत के बाजर पर नजरें टिकाए बैठा है । परन्तु भारत की लगातार बढ़ती ताकत और अमेरिका के साथ नजदीकी चीन को फूटी आंख नहीं सुहा रहा है । लिहाजा वह भारत को खेलने के लिए खुला मैदान भी नहीं देना चाहता है । 

ऐसे में माना जाता है कि वह पाकिस्तान को हर तरह से सपोर्ट देकर भारत के खिलाफ कार्रवाई के लिए उकसाता रहता है । कई लोग मौजूदा घटना के पीछे भी चीन की ही चाल मान रहे हैं । 

बहरहाल युद्धविराम के बाद इस बात की भी चर्चा हो रही है कि अमेरिका ने भारत को सहमत करने के लिए चीन का भी सहारा लिया । अमेरिका भारत को इस प्वायंट पर तैयार करने में सफल रहा कि उसके लिए पाकिस्तान नहीं बल्कि चीन बड़ी चुनौती है । 

दरअसल अमेरिका के लिए भी चीन का विकल्प एकमात्र भारत ही है । भारत के जरिए ही वह चीन को घेरने की कोशिश कर रहा है । चीन से टकराव के बाद उसके लिए भारत ही सबसे बड़ा बाजार है । अमेरिका की कई कंपनियां भी चीन छोड़कर भारत का रुख कर रही है । इसलिए चीन चाहता है कि भारत में हालात खराब हो ताकि उसके यहां से कंपनियों का पलायन रूके जबकि अमेरिका नहीं चाहता कि भारत पाकिस्तान के साथ युद्ध में उलझे और यहां का बाजार खराब हो ।