Bihar Result Explained: नीतीश की बंपर जीत के क्या मायने, जानिए पांच बड़े कारण

Authored By: News Corridors Desk | 16 Nov 2025, 01:01 PM
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बिहार विधानसभा चुनाव परिणामों ने कई चुनावी पंडितों को चौंका दिया है। इतनी सीटों की उम्मीद NDA को भी शायद नहीं रही होगी लेकिन कोई यह कभी नहीं कहेगा। 
वजह नंबर 1- नीतीश कुमार पर भरोसा
इस चुनाव में किस बात की सबसे ज्यादा चर्चा रही? इसका जवाब है- नीतीश कुमार और उनका नेतृत्व। वैसे नीतीश कुमार पिछले दो दशक से ज्यादा वक्त से बिहार का चेहरा बने हुए हैं। उन्हें सुशासन बाबू का तमगा हासिल है। उनपर पाला बदलने का भले ही आरोप लगा हो लेकिन उनके दामन पर ऐसा कोई दाग नहीं है जिससे जनता बिदके। बिहार में इस बार चुनाव इसलिए खास रहे क्योंकि नीतीश कुमार लंबे समय से सत्ता में हैं। वे 2000 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कहने पर बिहार के मुख्यमंत्री बने थे। बाद के वर्षों में उन्होंने गठबंधन बदले, लेकिन सत्ता उनके इर्द-गिर्द ही रही। अब तक वे कुल नौ बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं। 2020 के बाद से ही वे तीन बार शपथ ले चुके थे। अब 10वीं बार की तैयारी में हैं।
इस बार चुनाव में बड़ा सवाल यह था कि क्या नीतीश कुमार सत्ता विरोधी लहर का सामना कर पाएंगे? इस बार उनकी पार्टी जनता दल-यूनाइटेड JDU 101 सीटों पर चुनाव में उतरी थी। महागठबंधन शुरुआत में यह दबाव बनाने में कामयाब रहा कि नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित नहीं किया जा रहा है।
नतीजतन, भाजपा के बड़े नेताओं ने बार-बार यह कहकर नीतीश के नेतृत्व पर मुहर लगा दी कि जीत के बाद तो वे ही विधायक दल के नेता चुने जाएंगे। 
वजह नंबर 2- बंपर मतदान
बिहार में इस बार दो चरण में मतदान हुआ। पहले चरण में 6 नवंबर को 18 जिलों की 121 सीटों पर वोट पड़े। कुल 65.08 फीसदी मतदान हुआ। दूसरे चरण में 20 जिलों की 122 सीटें पर मतदान हुआ। कुल 69.20 फीसदी वोट पड़े।
इस तरह दोनों चरणों को मिलाकर कुल मतदान 67.13 फीसदी मतदान हुआ। यह सिर्फ एक सामान्य आंकड़ा नहीं है क्योंकि बिहार में 1952 के बाद से अब तक के चुनाव इतिहास में इतना ज्यादा मतदान कभी नहीं हुआ।
चुनावी विश्लेषकों और चुनावी इतिहास के आंकड़ों पर गौर करें, तो यह सामान्य धारणा यही होती है कि ज्यादा मतदान यानी सत्ता विरोधी लहर है। लेकिन पिछले कुछ सालों में यह धारणा टूटी है। बिहार विधानसभा चुनावों के परिणामों ने भी यही दिखाया है कि ज्यादा वोट सत्ता विरोधी ही नहीं होता, बल्कि यह सत्ता के पक्ष में भी होता है। नतीजे भी कुछ इसी तरह आए हैं। जदयू को पिछली बार 15.39 फीसदी वोट मिले थे।
इस बार उसे 18 फीसदी से ज्यादा वोट  हैं। यानी तीन फीसदी से ज्यादा का इजाफा जदयू के वोट बैंक में हुआ है।
बढ़े हुए वोट प्रतिशत का नतीजों पर भी असर नजर आया। पिछले चुनाव में जदयू जहां तीसरे नंबर की पार्टी थी, इस बार उसे 30 से ज्यादा सीटों का फायदा हुआ है और वह राजद से भी आगे है।
वजह नंबर3- महिलाओं के लिए योजना और उनका मतदान
बिहार में नीतीश कुमार की जीत का बड़ा कारण महिलाएं मानी जाती रही हैं। कभी शराबबंदी को नीतीश का ट्रंप कार्ड माना गया था। लड़कियों को साइकिल देने से लेकर महिलाओं के खाते में सीधे 10 हजार रुपये भेजने तक की योजनाओं का नीतीश को फायदा होता रहा। इस बार चुनाव से ऐन पहले नीतीश कुमार ने करीब डेढ़ करोड़ महिलाओं के खाते में 10 हजार रुपये भेज दिए।इसे चुनाव का बड़ा गेमचेंजर माना गया।
मतदान के दौरान इसका असर भी तब दिखाई दिया, जब दोनों ही चरणों में महिलाओं ने पुरुषों के मुकाबले बढ़-चढ़कर वोट डाले। पुरुषों की तुलना में पहले चरण में 7.48 फीसदी और दूसरे चरण में 10.15 फीसदी अधिक महिलाओं ने वोट किया।
वजह नंबर 4- बिखरा विपक्ष
पहले चरण के लिए नामांकन की आखिरी तारीख तक महागठबंधन में सीटों के बंटवारे की स्थिति साफ नहीं थी। कई सीटों पर गठबंधन में शामिल दो-दो दलों के उम्मीदवार आमने-सामने थे। इस देरी का फायदा एनडीए को मिला, जहां महागठबंधन के मुकाबले काफी पहले सीट शेयरिंग हो चुकी थी। कुछ जगहों पर महागठबंधन के उम्मीदवारों में फ्रेंडली फाइट भी हुई। बिहार प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह ने इसे अपनी पार्टी और गठबंधन की कमी माना है।
भाजपा और जदयू बराबरी से 101-101 सीटों पर चुनाव में उतरे थे। इस वजह से दोनों बड़े दलों में मतभेद की स्थिति नहीं थी। वहीं, महागठबंधन ने अंत तक सीट शेयरिंग के बारे में औपचारिक एलान या आंकड़े नहीं बताए।
महागठबंधन में प्रदेश में नेतृत्व के चेहरे को लेकर रार आख़िर तक बनी रही। आख़िरकार कांग्रेस की तरफ़ से अशोक गहलोत को ट्रबलशूटर के तौर पर भेजा गया और फिर तेजस्वी को मुख्यमंत्री पद का और वीआईपी  VIP के मुकेश सहनी को उपमुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित किया गया। इसके बाद एनडीए NDA ने जमकर इस बात को उछाला कि महागठबंधन ने किसी मुस्लिम और दलित चेहरे को डिप्टी सीएम पद का उम्मीदवार घोषित नहीं किया।
वजह नंबर 5- मोदी और नीतीश की इमेज
एनडीए NDA इस बात को स्थापित करने में कामयाब रहा कि डबल इंजन वाली सरकार ही बिहार के विकास को गति दे सकती है। इसमें एनडीए को सबसे बड़ी मदद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की छवि से मिली।
एनडीए ने इन्हीं दो चेहरों को आगे रखकर चुनाव लड़ा। प्रधानमंत्री मोदी और चिराग पासवान की केमिस्ट्री की वजह से लोजपा (रामविलास) LJP(R) भी गठबंधन में मजबूती से खड़ी थी। एनडीए वोटरों के बीच यह धारणा बनाने में कामयाब रहा कि बिहार की जनता अब जंगलराज की दोबारा वापसी नहीं चाहती और सुशासन चाहती है।चिराग़ और जीतनराम मांझी की पार्टी को मिले वोट से एनडीए को काफी फायदा मिला। 
लालू-राबड़ी की सरकार के कार्यकाल से ‘जंगलराज’ शब्द किस तरह जुड़ा है, इसका असर तेजस्वी के प्रचार में भी दिखा। पूरे प्रचार के दौरान राजद ने कहीं भी लालू या राबड़ी की तस्वीर का इस्तेमाल नहीं किया। पोस्टरों में अकेले तेजस्वी ही नजर आए।