पाकिस्तान रेंजर्स की ओर से हिरासत में लिए गए बीएसएफ जवान पूर्णम कुमार साहू रिहा हो गए हैं। पाकिस्तान ने 20 दिन बाद बीएसएफ कांस्टेबल पूर्णम कुमार साहू को भारत को सौंप दिया। आइए समझते हैं कि यह घटना कैसे जिनेवा कन्वेंशन जैसे अंतरराष्ट्रीय कानूनों से जुड़ी है और क्यों पाकिस्तान को जवान को वापस करना पड़ा।
कौन हैं पूर्णम कुमार साहू और क्या हुआ था उनके साथ?
बंगाल के हुगली जिले के निवासी और बीएसएफ के कांस्टेबल पूर्णम कुमार साहू पंजाब के फिरोजपुर सेक्टर में तैनात थे। 23 अप्रैल को पहलगाम आतंकी हमले के अगले दिन वे गलती से अंतरराष्ट्रीय सीमा पार कर पाकिस्तान चले गए थे, जहां पाकिस्तान रेंजर्स ने उन्हें हिरासत में ले लिया। इसके बाद वे 20 दिनों तक पाकिस्तान में रहे।
उनकी गर्भवती पत्नी रजनी ने उनकी वापसी के लिए लगातार प्रयास किए। वे पश्चिम बंगाल से वाघा-अटारी बॉर्डर तक पहुंचीं और भारत सरकार व बीएसएफ से अपील की। बुधवार को पूर्णम की सुरक्षित वापसी हुई, जिससे पूरे देश में खुशी की लहर दौड़ गई।
बीएसएफ जवान को वापस करना पाकिस्तान की मजबूरी?
इस घटना को केवल मानवीय आधार पर नहीं देखा जा सकता, बल्कि इसके पीछे अंतरराष्ट्रीय कानून भी हैं। पाकिस्तान जिनेवा कन्वेंशन का हस्ताक्षरकर्ता है, और उसके लिए इन नियमों का पालन करना जरूरी है।
क्या है जिनेवा कन्वेंशन?
जिनेवा कन्वेंशन एक अंतरराष्ट्रीय समझौता है, जिसमें युद्धबंदियों (Prisoners of War - POWs) के अधिकारों और उनके साथ मानवीय व्यवहार की गारंटी दी गई है। इस संधि के तहत:
युद्धबंदियों के साथ सम्मानजनक व्यवहार करना अनिवार्य है।
उन्हें प्रताड़ित नहीं किया जा सकता।
उन्हें डराया या अपमानित नहीं किया जा सकता।
टीवी या सोशल मीडिया पर उनकी तस्वीरें/वीडियो दिखाना कन्वेंशन का उल्लंघन माना जाता है।
उन्हें जल्द से जल्द सुरक्षित रूप से उनके देश को सौंपा जाना चाहिए।
हालांकि पूर्णम कुमार का मामला पारंपरिक युद्धबंदी जैसा नहीं था, लेकिन ऐसी स्थितियों में भी यह संधि मानवीय आधार पर लागू की जाती है, खासकर जब सैनिक गलती से सीमा पार कर जाता है।
क्यों आई लोगों को विंग कमांडर अभिनंदन की याद
दरअसल 2019 में पुलवामा हमले के बाद भारत ने बालाकोट में एयर स्ट्राइक की थी, जिसके बाद पाकिस्तानी फाइटर जेट भारत की सीमा में घुसने की कोशिश कर रहे थे। इस दौरान विंग कमांडर अभिनंदन का मिग-21 क्रैश हो गया और वे पाकिस्तान की गिरफ्त में आ गए थे। भारत ने तत्काल अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाया और जिनेवा कन्वेंशन के नियमों की याद दिलाई।
तीव्र कूटनीतिक प्रयासों और अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते पाकिस्तान को अभिनंदन को महज 60 घंटे में रिहा करना पड़ा था।
क्या यह आज के भारत की कूटनीतिक ताकत है?
पूर्णम कुमार की वापसी के साथ देश में यह चर्चा भी जोरों पर है कि आज भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि और कूटनीति इतनी मजबूत हो चुकी है कि पाकिस्तान जैसे देशों को भी अंतरराष्ट्रीय नियमों का पालन करने पर मजबूर होना पड़ता है।
सोशल मीडिया पर भी भारतीय सेना, प्रधानमंत्री मोदी और विदेश मंत्रालय की तारीफ की जा रही है। 'भारत माता की जय' के नारों के साथ देशवासियों ने साहू की वापसी का स्वागत किया।