DRDO का बड़ा तोहफा, समुद्र के खारे पानी को बनाएगा मीठा

Authored By: News Corridors Desk | 16 May 2025, 03:26 PM
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डीआरडीओ ने कमाल कर दिखाया है। मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ की दिशा में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने एक खास और अत्याधुनिक तोहफा दिया है। DRDO की कानपुर स्थित प्रयोगशाला DMSRDE (Defence Materials & Stores Research & Development Establishment) ने महज 8 महीनों में एक ‘नैनोपोरस मल्टीलेयर्ड पॉलीमेरिक मेम्ब्रेन’ विकसित की है, जो समुद्र के खारे पानी को उच्च दबाव में मीठे पानी में बदलने की क्षमता रखती है।

क्या है यह तकनीक?

नैनोपोरस मल्टीलेयर्ड पॉलीमेरिक मेम्ब्रेन एक अत्याधुनिक झिल्ली तकनीक है, जिसे खासतौर पर समुद्री पर्यावरण की कठोर परिस्थितियों को ध्यान में रखकर बनाया गया है। इसका उद्देश्य खारे पानी से नमक और अशुद्धियाँ हटाकर उसे पीने योग्य बनाना है।

क्यों खास है यह मेम्ब्रेन?

1. नैनोपोरस डिजाइन

इस झिल्ली में कई परतें हैं, जिनमें बेहद सूक्ष्म छिद्र (नैनो-छिद्र) होते हैं। ये केवल पानी के अणुओं को गुजरने देते हैं, जबकि नमक, क्लोराइड आयन और अन्य अशुद्धियाँ बाहर रोक दी जाती हैं।

2. हाई प्रेशर टॉलरेंस

यह तकनीक समुद्र के गहरे इलाकों से पानी खींचकर भी प्रभावी रूप से काम करती है, यानी उच्च दबाव में भी इसकी क्षमता बनी रहती है।

3. कम मेंटेनेंस और टिकाऊपन

इसकी संरचना इतनी मजबूत और टिकाऊ है कि इसे बार-बार बदलने की जरूरत नहीं पड़ती, जिससे ऑपरेशनल लागत में भी काफी कमी आती है।

कहां हुआ परीक्षण?

इस मेम्ब्रेन का परीक्षण भारतीय तटरक्षक बल के ऑफशोर पेट्रोलिंग वेसल (OPV) में मौजूद मौजूदा डीसैलिनेशन प्लांट में किया गया।

प्रारंभिक परीक्षणों में इसने उत्कृष्ट प्रदर्शन दिखाया।

अब इसे 500 घंटे के ऑपरेशनल परीक्षण के बाद अंतिम मंजूरी दी जाएगी।

नागरिक उपयोग की भी उम्मीद

हालांकि यह तकनीक फिलहाल कोस्ट गार्ड के जहाजों के लिए तैयार की गई है, लेकिन DRDO के वैज्ञानिकों का मानना है कि इसमें कुछ बदलाव कर इसे समुद्री किनारे बसे गांवों, छोटे द्वीपों और आपदा प्रभावित तटीय इलाकों में भी उपयोग किया जा सकता है। यह आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक और बड़ा कदम माना जा रहा है।