'भारत कोई धर्मशाला नहीं है...', जानें सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा क्यों कहा?

Authored By: News Corridors Desk | 19 May 2025, 06:31 PM
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भारत में शरण की याचिका दायर करने वाले एक श्रीलंकाई नागरिक की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए स्पष्ट किया कि भारत पूरी दुनिया के शरणार्थियों को शरण देने वाला देश नहीं बन सकता। न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने कहा कि भारत कोई धर्मशाला नहीं है, जहां सभी देशों से लोग आकर बस सकें।

एलटीटीई से जुड़े होने के शक में हुआ था गिरफ्तार

याचिकाकर्ता एक श्रीलंकाई नागरिक है जिसे 2015 में लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (LTTE) से संबंध के संदेह में गिरफ्तार किया गया था। 2018 में ट्रायल कोर्ट ने उसे गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत दोषी ठहराया और 10 साल की सजा सुनाई। बाद में 2022 में मद्रास हाईकोर्ट ने उसकी सजा घटाकर 7 साल कर दी।

सजा पूरी करने के बावजूद याचिकाकर्ता ने श्रीलंका वापस लौटने से इनकार कर दिया। उसका तर्क है कि श्रीलंका में उसकी जान को खतरा है और उसकी पत्नी व बच्चे भारत में ही रह रहे हैं। उसने भारत में शरणार्थी के रूप में रहने की अनुमति मांगी।

सुप्रीम कोर्ट की दो टूक टिप्पणी:

न्यायमूर्ति दत्ता ने याचिकाकर्ता की दलीलों पर टिप्पणी करते हुए कहा: क्या भारत को दुनिया भर से शरणार्थियों की मेजबानी करनी है? हम पहले से ही 140 करोड़ लोगों के साथ संघर्ष कर रहे हैं। यह कोई धर्मशाला नहीं है। अदालत ने यह भी पूछा, आपको यहां बसने का क्या अधिकार है?" याचिकाकर्ता के वकील ने संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता) और अनुच्छेद 19 (बोलने की आज़ादी, आवागमन की स्वतंत्रता आदि) का हवाला दिया, लेकिन पीठ ने साफ किया कि:

अनुच्छेद 21 का उल्लंघन नहीं हुआ है क्योंकि गिरफ्तारी कानून के तहत की गई थी।

अनुच्छेद 19 केवल भारतीय नागरिकों पर लागू होता है, न कि विदेशियों पर।

"दूसरे देश में जाएं": अदालत की सलाह

जब याचिकाकर्ता के वकील ने श्रीलंका में जान के खतरे की बात दोहराई, तो सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया कि अगर श्रीलंका में खतरा है, तो किसी अन्य देश में शरण ली जाए, लेकिन भारत में रहने का कोई संवैधानिक या कानूनी आधार नहीं है।